शरीर Poetry (page 16)

अमीर-ए-शहर के आँगन में जब उजाले हुए

संजय मिश्रा शौक़

समुंदर की ख़ुश्बू

समीना राजा

उतरे तिलिस्म शब के उजालों पे रात-भर

समद अंसारी

बुझते सूरज के शरारे नूर बरसाने लगे

समद अंसारी

तेग़ खींचे हुए खड़ा क्या है

सलमान अख़्तर

ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे

सालिम सलीम

दालान में कभी कभी छत पर खड़ा हूँ मैं

सालिम सलीम

यूँ तिरी चाप से तहरीक-ए-सफ़र टूटती है

सलीम सिद्दीक़ी

ग़म-ए-हयात मिटाना है रो के देखते हैं

सलीम सिद्दीक़ी

बदन क़ुबूल है उर्यानियत का मारा हुआ

सलीम सिद्दीक़ी

ज़ुल्मत है तो फिर शो'ला-ए-शब-गीर निकालो

सलीम शाहिद

सूरज ज़मीं की कोख से बाहर भी आएगा

सलीम शाहिद

रास्ता चाहिए दरिया की फ़रावानी को

सलीम शाहिद

मेरे एहसास की रग रग में समाने वाले

सलीम शाहिद

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

सलीम शाहिद

इन दर-ओ-दीवार की आँखों से पट्टी खोल कर

सलीम शाहिद

हर्फ़-ए-बे-मतलब की मैं ने किस क़दर तफ़्सीर की

सलीम शाहिद

घर के दरवाज़े खुले हों चोर का खटका न हो

सलीम शाहिद

कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती

सलीम कौसर

मशवरा

सलीम फ़िगार

शाम ढलते ही तिरे ध्यान में आ जाता हूँ

सलीम फ़िगार

नाईट-कलब

सलीम बेताब

फूलों की है तख़्लीक़ कि शो'लों से बना है

सलीम बेताब

शजर तो कब का कट के गिर चुका है

सलीम अंसारी

बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे

सलीम अहमद

अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया

सलीम अहमद

वो ज़िंदा है

सलाम मछली शहरी

कश्मकश

सलाम मछली शहरी

तुम्हें मिरे ख़याल की मुसव्विरी क़ुबूल हो

सलाम मछली शहरी

आवाज़ों से जिस्म हुआ नम

सलाहुद्दीन महमूद

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