शरीर Poetry (page 17)

हवा की चितवन जैसे नैन

सलाहुद्दीन महमूद

आवाज़ों से जिस्म हुआ नम

सलाहुद्दीन महमूद

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो तेरी इनायत की सज़ा याद है अब तक

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो इश्क़ जो हम को लाहिक़ था

साजिदा ज़ैदी

मी-यौमिल-हिसाब

साजिदा ज़ैदी

ज़ख़्मों को मिरे रंग हिना दे गई सबा

सैलानी सेवते

एक से एक है ग़ारत-गर-ए-ईमान यहाँ

सैफ़ुद्दीन सैफ़

ख़ुशियाँ तमाम ग़म में वो तब्दील कर गया

सैफ़ी सरौंजी

ख़्वाहिश से कहीं कोई माहौल बदलता है

सैफ़ी प्रेमी

सीने की आग आतिश-ए-महशर हो जिस तरह

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

क्यूँ जल-बुझे कहीं तो गिरफ़्तार बोलते

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

रंगों में तेरा अक्स ढला तू न ढल सकी

साहिर लुधियानवी

ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया

साहिर लुधियानवी

तेरी आवाज़

साहिर लुधियानवी

लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं

साहिर लुधियानवी

जागीर

साहिर लुधियानवी

हिरास

साहिर लुधियानवी

फ़रार

साहिर लुधियानवी

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

साहिर लुधियानवी

इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के

साहिर लुधियानवी

अयाँ 'अलीम' से है जिस्म-ओ-जान का इल्हाक़

साहिर देहल्वी

तिरे सिवा मिरी हस्ती कोई जहाँ में नहीं

साहिर देहल्वी

इस जिस्म की है पाँच अनासिर से बनावट

साहिर देहल्वी

दरमियान-ए-जिस्म-ओ-जाँ है इक अजब सूरत की आड़

साहिर देहल्वी

चार उंसुर से बना है जिस्म-ए-पाक

साहिर देहल्वी

अहबाब भी हैं ख़ूब कि तश्हीर कर गए

सहबा वहीद

ख़ून ताज़ा

सहबा अख़्तर

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