शरीर Poetry (page 19)

इक शोर समेटो जीवन भर और चुप दरिया में उतर जाओ

साबिर वसीम

जो बू-ए-ज़िंदगी मुझे किरन किरन से आई है

साबिर आफ़ाक़ी

क्या पता क्या था उधर और क्या न था

साबिर अदीब

कहाँ पे बिछड़े थे हम लोग कुछ पता मिल जाए

सबा जायसी

बू-ए-ख़ुश की तरह हर सम्त बिखर जाऊँगा

सबा जायसी

छुप जाएँ कहीं आ कि बहुत तेज़ है बारिश

सबा इकराम

इन पत्थरों के शहर में दिल का गुज़र कहाँ

सबा इकराम

चक्खोगे अगर प्यास बढ़ा देगा ये पानी

सबा इकराम

आवाज़ के पत्थर जो कभी घर में गिरे हैं

सबा इकराम

मोम पिघलाता रहा तेरा ख़याल

रुख़साना नूर

चैन घर में न कभी तेरे नगर में पाऊँ

रूही कंजाही

दिल जो घबराया तो उठ कर दोस्तों में आ गया

रियाज़ साग़र

ख़ला-नवर्दी

रियाज़ लतीफ़

सब ख़लाओं को ख़लाओं से भिगो सकता है

रियाज़ लतीफ़

ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में

रियाज़ लतीफ़

जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए

रियाज़ लतीफ़

हिसार के सभी निज़ाम गर्द गर्द हो गए

रियाज़ लतीफ़

दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए

रियाज़ लतीफ़

नज़र आती है दूर की सूरत

रियाज़ ख़ैराबादी

जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह

रियाज़ ख़ैराबादी

हर एक जिस्म पे बस एक ही से गहने लगे

रिन्द साग़री

बरहना देख कर आशिक़ में जान-ए-ताज़ा आती है

रिन्द लखनवी

वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके

रिन्द लखनवी

जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले

रिन्द लखनवी

कहाँ पे लाई है मेरी ख़ुदी कहाँ से मुझे

रिफ़अतुल क़ासमी

जागती आँखों का ख़्वाब

रहमान फ़ारिस

हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ

रज़ी मुजतबा

दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई

राज़ी अख्तर शौक़

ख़्वाबों की इक भीड़ लगी है जिस्म बेचारा नींद में है

राज़ी अख्तर शौक़

दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई

राज़ी अख्तर शौक़

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