कहाँ पे लाई है मेरी ख़ुदी कहाँ से मुझे

कहाँ पे लाई है मेरी ख़ुदी कहाँ से मुझे

न अपने दिल से ग़रज़ है न अपनी जाँ से मुझे

न इस जहान से निस्बत न उस जहाँ से मुझे

बस एक रब्त है दुनिया-ए-बे-निशाँ से मुझे

शुऊ'र-ए-ज़ीस्त मिला फ़िक्र-ए-दो-जहाँ से मुझे

मता-ए-दर्द मिली दिल के आस्ताँ से मुझे

क़रार-ए-जाँ न बनी अपनी हस्ती-ए-मौहूम

गिला यही है तिरी उम्र-ए-जावेदाँ से मुझे

ये हो रहे हैं सर-ए-अर्श तज़्किरे किस के

ये किस ने आज बुलाया है जिस्म-ओ-जाँ से मुझे

ज़रा सँभलने तो दे ऐ जहान-ए-कम-आसार

ख़ुद-आगही ने गिराया है आसमाँ से मुझे

पयम्बरी के एवज़ मैं ने शाइ'री की है

ये हौसला तो मिला उस के आस्ताँ से मुझे

(507) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Rifat-ul-Qasmi. is written by Rifat-ul-Qasmi. Complete Poem in Hindi by Rifat-ul-Qasmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.