शरीर Poetry (page 20)
ये वक़्त जब भी लहू का ख़िराज माँगता है
रज़ा मौरान्वी
ये किस दयार के हैं किस के ख़ानदान से हैं
रज़ा मौरान्वी
हर एक घर का दरीचा खुला है मेरे लिए
रज़ा हमदानी
आ तुझ को ख़याल में बसाऊँ
रज़ा हमदानी
हमारे ख़्वाब हमारी पसंद होते गए
रौनक़ रज़ा
ब-नाम-ए-पैकर-ख़ाकी न गर्द बन जाओ
रौनक़ दकनी
सिलसिले ये कैसे हैं टूट कर नहीं मिलते
रउफ़ ख़लिश
रस्ते में तो ख़तरात की सुन-गुन भी बहुत है
रऊफ़ ख़ैर
कोई भी ज़ोर ख़रीदार पर नहीं चलता
रऊफ़ ख़ैर
अगर अनार में वो रौशनी नहीं भरता
रऊफ़ ख़ैर
साया सा इक ख़याल की पहनाइयों में था
रासिख़ इरफ़ानी
गर्म हर लम्हा लहू जिस्म के अंदर रखना
रासिख़ इरफ़ानी
किस शय का सुराग़ दे रहा हूँ
राशिद मुफ़्ती
प्यारा सा ख़्वाब नींद को छू कर गुज़र गया
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
जंगल की लकड़ियाँ
राशिद अनवर राशिद
ख़िलाफ़ सारी लकीरें थीं हाथ मलते क्या
राशिद अनवर राशिद
बस एक बार तिरा अक्स झिलमिलाया था
राशिद अनवर राशिद
सिलसिला-ए-ज़िन्दगी
राशिद आज़र
बेबसी
राशिद आज़र
तुझ से क़रीब-तर तिरी तन्हाइयों में हूँ
रशीदुज़्ज़फ़र
ख़ुश्की पे रहूँगी कभी पानी में रहूँगी
राशिदा माहीन मलिक
ये ज़ाविया सूरज का बदल जाएगा साईं
रशीद क़ैसरानी
सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है
रशीद क़ैसरानी
सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था
रशीद क़ैसरानी
सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था
रशीद क़ैसरानी
जब रात के सीने में उतरना है तो यारो
रशीद क़ैसरानी
गुम्बद-ए-ज़ात में अब कोई सदा दूँ तो चलूँ
रशीद क़ैसरानी
सरहद-ए-जिस्म पे हैरान खड़ा था मैं भी
रशीद निसार
मैं उसे अपने मुक़ाबिल देख कर घबरा गया
रशीद निसार
अपने ज़िंदा जिस्म की गुफ़्तार में खोया हुआ
रशीद निसार
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