अगर अनार में वो रौशनी नहीं भरता

अगर अनार में वो रौशनी नहीं भरता

तो ख़ाकसार दम-ए-आगही नहीं भरता

ये भूक प्यास बहर-हाल मिट ही जाती है

मगर है चीज़ तो ऐसी कि जी नहीं भरता

तू अपने आप में माना कि एक दरिया है

मिरा वजूद भी कूज़ा सही नहीं भरता

ये लेन-देन की अपनी हदें भी होती हैं

कि पेट भरता है झोली कोई नहीं भरता

हमारा कोई भी नेमुल-बदल नहीं होगा

हमारी ख़ाली जगह कोई भी नहीं भरता

मुआफ़ करना ये ख़ाका कहाँ उभरता है

अगर ये दस्त-ए-हुनर रंग ही नहीं भरता

कहाँ ये 'ख़ैर' कहाँ हार जीत का ख़दशा

कि जिस्म ओ जान की बाज़ी से जी नहीं भरता

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In Hindi By Famous Poet Rauf Khair. is written by Rauf Khair. Complete Poem in Hindi by Rauf Khair. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.