शरीर Poetry (page 25)

वक़्त अजीब चीज़ है वक़्त के साथ ढल गए

हसन आबिद

इल्तिजा

हारिस ख़लीक़

कलियों का तबस्सुम हो, कि तुम हो कि सबा हो

हरी चंद अख़्तर

साँप का साया ख़्वाब मेरे डस जाता है

हनीफ़ तरीन

ये फ़ज़ा-ए-नील-गूँ ये बाल-ओ-पर काफ़ी नहीं

हनीफ़ फ़ौक़

मैं जो अपने हाल से कट गया तो कई ज़मानों में बट गया

हनीफ़ असअदी

यक़ीन की सल्तनत थी और सुल्तानी हमारी

हम्माद नियाज़ी

जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी

हम्माद नियाज़ी

रुस्तगारी

हामिदी काश्मीरी

चाँद कोहरे के जज़ीरों में भटकता होगा

हामिदी काश्मीरी

बस उसी का सफ़र-ए-शब में तलबगार है क्या

हामिदी काश्मीरी

प्यास दायरा बनाती है

हमीदा शाहीन

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

अपने हिसार-ए-जिस्म से बाहर भी देखते

हामिद जीलानी

हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद

हमदम कशमीरी

छटी है राह से गर्द-ए-मलाल मेरे लिए

हमदम कशमीरी

वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने

हकीम मंज़ूर

फूल हो कर फूल को क्या चाहना

हकीम मंज़ूर

ख़ुद अपने-आप से मिलने का मैं अपना इरादा हूँ

हकीम मंज़ूर

ढल गया जिस्म में आईने में पत्थर में कभी

हकीम मंज़ूर

आगे पीछे उस का अपना साया लहराता रहा

हकीम मंज़ूर

मता-ए-दर्द का ख़ूगर मिरी तलाश में है

हैदर अली जाफ़री

या-अली कह कर बुत-ए-पिंदार तोड़ा चाहिए

हैदर अली आतिश

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या

हैदर अली आतिश

क्या क्या न रंग तेरे तलबगार ला चुके

हैदर अली आतिश

ख़ार मतलूब जो होवे तो गुलिस्ताँ माँगूँ

हैदर अली आतिश

हसरत-ए-जल्वा-ए-दीदार लिए फिरती है

हैदर अली आतिश

हंगाम-ए-नज़'अ महव हूँ तेरे ख़याल का

हैदर अली आतिश

बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया

हैदर अली आतिश

बाज़ार-ए-दहर में तिरी मंज़िल कहाँ न थी

हैदर अली आतिश

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