धूल Poetry (page 66)
वो इत्र-ए-ख़ाक अब कहाँ पानी की बास में
आफ़ताब इक़बाल शमीम
इक फ़ना के घाट उतरा एक पागल हो गया
आफ़ताब इक़बाल शमीम
दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें
आफ़ताब इक़बाल शमीम
प्यासी हैं रगें जिस्म को ख़ूँ मिल नहीं सकता
आफ़ताब आरिफ़
अंदाज़-ए-नुमू कैसा अलमनाक निकाला
अफ़ीफ़ सिराज
पत्थर पर तस्वीर बना कर
आदिल मंसूरी
लफ़्ज़ की छाँव में
आदिल मंसूरी
वो बरसात की शब वो पिछ्ला पहर
आदिल मंसूरी
हर ख़्वाब काली रात के साँचे में ढाल कर
आदिल मंसूरी
एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया
आदिल मंसूरी
दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का
आदिल मंसूरी
मुफ़ाहमत न सिखा जब्र-ए-नारवा से मुझे
अदीम हाशमी
दर्द होते हैं कई दिल में छुपाने के लिए
अदीम हाशमी
ऐसा भी नहीं उस से मिला दे कोई आ कर
अदीम हाशमी
तू जो चाहे भी तो सय्याद नहीं होने के
अदील ज़ैदी
हम अपना आप लुटाने कहाँ पे आ गए हैं
अदील ज़ैदी
बस लम्हे भर में फ़ैसला करना पड़ा मुझे
अदील ज़ैदी
ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने
अदा जाफ़री
ये इक और हम ने क़रीना किया
अबुल हसनात हक़्क़ी
ये इक और हम ने क़रीना किया
अबुल हसनात हक़्क़ी
मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था
अबु तुराब
ज़िंदगी ख़ाक-बसर शोला-ब-जाँ आज भी है
अबु मोहम्मद सहर
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
आबरू शाह मुबारक
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
आबरू शाह मुबारक
क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है
आबरू शाह मुबारक
ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
आबरू शाह मुबारक
इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो
आबरू शाह मुबारक
इंसान है तो किब्र सीं कहता है क्यूँ अना
आबरू शाह मुबारक
देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती
आबरू शाह मुबारक
मिट्टी थी किस जगह की
अबरार अहमद
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