पल Poetry (page 14)

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सुख़न का लहजा गुमान-ख़ाने में रह गया है

ग़ज़नफ़र हाशमी

नदी

गीताञ्जलि राय

ज़िंदगी से उम्र-भर तक चलने का वादा किया

गौतम राजऋषि

वो टुकड़ा रात का बिखरा हुआ सा

गौतम राजऋषि

दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया

फ़ुज़ैल जाफ़री

तुझे किस तरह छुड़ाऊँ ख़लिश-ए-ग़म-ए-निहाँ से

फ़िज़ा जालंधरी

बड़ा ग़ुरूर है पल भर की नेक-नामी का

फ़िराक़ जलालपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

फ़िगार उन्नावी

उदास देख के वजह-ए-मलाल पूछेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अचार का मर्तबान

फ़य्याज़ तहसीन

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फ़े सीन एजाज़

उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले

फ़े सीन एजाज़

वो इक लम्हा

फ़ातिमा हसन

मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो

फ़ातिमा हसन

मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो

फ़ातिमा हसन

कहो तो नाम मैं दे दूँ इसे मोहब्बत का

फ़ातिमा हसन

सुब्ह होती है तो दफ़्तर में बदल जाता है

फ़रियाद आज़र

इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है

फ़रियाद आज़र

मौत

फ़ारूक़ नाज़की

तआ'क़ुब

फ़ारूक़ मुज़्तर

अपनी आग में

फ़ारूक़ मुज़्तर

अपनी आँखों के हिसारों से निकल कर देखना

फ़ारूक़ मुज़्तर

वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

शुऊर-ओ-फ़िक्र की तज्दीद का गुमाँ तो हुआ

फ़रहत क़ादरी

तह-ए-बदन कहीं बेदार होता जाता हूँ

फ़रहत एहसास

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