पल Poetry (page 3)

रेज़ा रेज़ा कर जाता है

वज़ीर आग़ा

दरमाँदा

वज़ीर आग़ा

बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है

वसीम ताशिफ़

तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा

वसीम बरेलवी

शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं

वसीम बरेलवी

कहाँ क़तरे की ग़म-ख़्वारी करे है

वसीम बरेलवी

रात भर तुम न जागते रहियो

वक़ास बलूच

मुद्दआ' हासिल मिरा हो कर रहा

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

वो लम्हा भर की मिली ख़ुल्द में जो आज़ादी

वामिक़ जौनपुरी

बुलाए जाते हैं मक़्तल में हम सज़ा के लिए

वामिक़ जौनपुरी

आप ही अपना मैं दुश्मन हो गया

वजद चुगताई

हर एक लम्हा किया क़र्ज़ ज़िंदगी का अदा

वहीद अख़्तर

मावरा

वहीद अख़्तर

दीमक

वहीद अख़्तर

ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे आया तो इक फ़साना हुआ

वहीद अख़्तर

जाने कितना जीवन पीछे छूट गया अनजाने में

विश्वनाथ दर्द

मैं इंसाँ था ख़ुदा होने से पहले

विशाल खुल्लर

लम्हा लम्हा शोर सा बरपा हुआ अच्छा लगा

विशाल खुल्लर

कुछ तो मोहब्बतों की वफ़ाएँ निभाऊँ मैं

उषा भदोरिया

एक आश्ना अक्सर पास से गुज़रता है

उषा भदोरिया

आख़िरी मुलाक़ातें

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे

उनवान चिश्ती

कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ

उम्मीद फ़ाज़ली

ऐ दिल-ए-ख़ुद-ना-शनास ऐसा भी क्या

उम्मीद फ़ाज़ली

जाने फिर उस के दिल में क्या बात आ गई थी

त्रिपुरारि

दिल की बात न मानी होती इश्क़ किया क्यूँ पीरी में

तौसीफ़ तबस्सुम

आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे

तौसीफ़ तबस्सुम

हमारी क़ुर्बतों में फ़ासला न रह जाए

तसनीम आबिदी

है किस का इंतिज़ार खुला घर का दर भी है

तारिक़ बट

पलक झपकने में कुछ ख़्वाब टूट जाते हैं

तनवीर अहमद अल्वी

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