वो लम्हा भर की मिली ख़ुल्द में जो आज़ादी
तो क़ैद हो गए मिट्टी में हम सदा के लिए
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क़िर्तास पे नक़्शे हमें क्या क्या नज़र आए
वो तन्हा मेरे ही दरपय नहीं है
जो दश्त ख़्वाबों में अक्सर दिखाई देता है
मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बत
माँ
अपना एजाज़ दिखा दे साक़ी
सरकशी ख़ुद-कशी पे ख़त्म हुई
दिल अज़ल से मरकज़-ए-आलाम है
तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात
उम्र की रौ बदल गई शायद
दिल तोड़ कर वो दिल में पशीमाँ हुआ तो क्या
वो वादे याद नहीं तिश्ना है मगर अब तक