वो तो कहिए आज भी ज़ंजीर में झंकार है
वर्ना किस को याद रह जाती है दीवानों की बात
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ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है
किस ने बसाया था और उन को किस ने यूँ बर्बाद किया
जो दश्त ख़्वाबों में अक्सर दिखाई देता है
वो जो तस्बीह लिए है उस को
मुझे उस जुनूँ की है जुस्तुजू जो चमन को बख़्श दे रंग ओ बू
वो वादे याद नहीं तिश्ना है मगर अब तक
नए गुल खिले नए दिल बने नए नक़्श कितने उभर गए
पहचान लो उस को वही क़ातिल है हमारा
दिल तोड़ कर वो दिल में पशीमाँ हुआ तो क्या
ये ज़िंदगी की रात है तारीक किस क़दर
तेरी क़िस्मत ही में ज़ाहिद मय नहीं
अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है