पहचान लो उस को वही क़ातिल है हमारा
जिस हाथ में टूटी हुई तलवार लगे है
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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शमएँ रौशन हैं आबगीनों में
इस दौर की तख़्लीक़ भी क्या शीशागरी है
हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती
कार्ल मार्क्स
वो लम्हा भर की मिली ख़ुल्द में जो आज़ादी
अलिफ़ लैला
ज़मीर
उम्र की रौ बदल गई शायद
हालात से फ़रार की क्या जुस्तुजू करें
दीवाने दीवाने ठहरे खेल गए अँगारों से
रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना