इस दौर की तख़्लीक़ भी क्या शीशागरी है
हर आईने में आदमी उल्टा नज़र आए
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
ये माना शीशा-ए-दिल रौनक़-ए-बाज़ार-ए-उल्फ़त है
दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है
सफ़र-ए-ना-तमाम
सुर्ख़ दामन में शफ़क़ के कोई तारा तो नहीं
हारने जीतने से कुछ नहीं होता 'वामिक़'
न पूछो बेबसी उस तिश्ना-लब की
भूका बंगाल
मुदावा
ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है
वो वादे याद नहीं तिश्ना है मगर अब तक