न पूछो बेबसी उस तिश्ना-लब की
कि जिस की दस्तरस में जाम भी है
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सफ़र-ए-ना-तमाम
मैं तंग हूँ सुकून से अब इज़्तिराब दे
वो तो कहिए आज भी ज़ंजीर में झंकार है
पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी
देखिए कब राह पर ठीक से उट्ठें क़दम
कार्ल मार्क्स
दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
यक़ीनन आ गया है मय-कदे में तिश्ना-लब कोई
ये ज़िंदगी की रात है तारीक किस क़दर
तुम होश में जब आए तो आफ़त ही बन के आए
दिल के वीराने को यूँ आबाद कर लेते हैं हम
मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है