देखिए कब राह पर ठीक से उट्ठें क़दम
रात की मय का ख़ुमार देखिए कब तक रहे
Rahat Indori
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(438) Peoples Rate This
जो दश्त ख़्वाबों में अक्सर दिखाई देता है
रात के समुंदर में ग़म की नाव चलती है
ख़लिश सुकूँ का मुदावा नहीं तो कुछ भी नहीं
दिल के वीराने को यूँ आबाद कर लेते हैं हम
इस दौर की तख़्लीक़ भी क्या शीशागरी है
जब पुराना लहजा खो देता है अपनी ताज़गी
सफ़र-ए-ना-तमाम
तेरी क़िस्मत ही में ज़ाहिद मय नहीं
जमालियात
कहीं साक़ी का फ़ैज़-ए-आम भी है
वो वादे याद नहीं तिश्ना है मगर अब तक