इक हल्क़ा-ए-अहबाब है तन्हाई भी उस की
इक हम हैं कि हर बज़्म में तन्हा नज़र आए
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सरकशी ख़ुद-कशी पे ख़त्म हुई
रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
किस ने बसाया था और उन को किस ने यूँ बर्बाद किया
मैं तंग हूँ सुकून से अब इज़्तिराब दे
जो दश्त ख़्वाबों में अक्सर दिखाई देता है
मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बत
दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
फ़नकार के काम आई न कुछ दीदा-वरी भी
ये ज़िंदगी की रात है तारीक किस क़दर
हालात से फ़रार की क्या जुस्तुजू करें
यक़ीनन आ गया है मय-कदे में तिश्ना-लब कोई