मैं तंग हूँ सुकून से अब इज़्तिराब दे
बे-इंतिहा सुकून भी आज़ार ही तो है
Parveen Shakir
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Gulzar
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बुलाए जाते हैं मक़्तल में हम सज़ा के लिए
हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस
नहीं मिलते तो इक अदना शिकायत है न मिलने की
ख़ूनी क़िला
मुदावा
मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है
ये ज़िंदगी की रात है तारीक किस क़दर
उम्र की रौ बदल गई शायद
यक़ीनन आ गया है मय-कदे में तिश्ना-लब कोई
लाख आबाद-ए-तमन्ना हो के दिल
जमालियात
शीशा उस का अजीब है ख़ुद ही