लाख आबाद-ए-तमन्ना हो के दिल
फिर भी वीराँ है न जाने किस लिए
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दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
अपना एजाज़ दिखा दे साक़ी
हालात से फ़रार की क्या जुस्तुजू करें
बर्क़ सर-ए-शाख़-सार देखिए कब तक रहे
देखिए कब राह पर ठीक से उट्ठें क़दम
ये हम को छोड़ के तन्हा कहाँ चले 'वामिक़'
हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती
सरकशी ख़ुद-कशी पे ख़त्म हुई
बुलाए जाते हैं मक़्तल में हम सज़ा के लिए
अगर ग़ुबार हो दिल में अगर हो तंग-नज़र
न पूछो बेबसी उस तिश्ना-लब की