सरकशी ख़ुद-कशी पे ख़त्म हुई
एक रस्सी थी जल गई शायद
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
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देखिए कब राह पर ठीक से उट्ठें क़दम
कहीं साक़ी का फ़ैज़-ए-आम भी है
कार्ल मार्क्स
मुदावा
बदलती रहती हैं क़द्रें रहील-ए-वक़्त के साथ
रात भी मुरझा चली चाँद भी कुम्हला गया
हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती
इक हल्क़ा-ए-अहबाब है तन्हाई भी उस की
जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ
दीवाने दीवाने ठहरे खेल गए अँगारों से
मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बत
फ़नकार के काम आई न कुछ दीदा-वरी भी