रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
हम को अहसास-ए-जुदाई से बचाते रहना
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साज़-ए-हस्ती में कुछ सदा ही नहीं
अरे ओ अदीब-ए-फ़सुर्दा-ख़ू अरे ओ मुग़न्नी-ए-रंग ओ बू
ये माना शीशा-ए-दिल रौनक़-ए-बाज़ार-ए-उल्फ़त है
ये हम को छोड़ के तन्हा कहाँ चले 'वामिक़'
शीशा उस का अजीब है ख़ुद ही
वो जो तस्बीह लिए है उस को
तक़्सीर क्या है हसरत-ए-दीदार ही तो है
रात भी मुरझा चली चाँद भी कुम्हला गया
दिल अज़ल से मरकज़-ए-आलाम है
ज़मीर
ख़ूनी क़िला