अरे ओ अदीब-ए-फ़सुर्दा-ख़ू अरे ओ मुग़न्नी-ए-रंग ओ बू
अभी हाशिए पे खड़ा है तू बहुत आगे अहल-ए-हुनर गए
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दिल तोड़ कर वो दिल में पशीमाँ हुआ तो क्या
अलिफ़ लैला
हालात से फ़रार की क्या जुस्तुजू करें
ख़लिश सुकूँ का मुदावा नहीं तो कुछ भी नहीं
जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ
नए गुल खिले नए दिल बने नए नक़्श कितने उभर गए
तुम होश में जब आए तो आफ़त ही बन के आए
है जिस की ठोकरों में आब-ए-ज़ि़ंदगी 'वामिक़'
वो तो कहिए आज भी ज़ंजीर में झंकार है
हम न कहते थे शाइरी है वबाल
तक़्सीर क्या है हसरत-ए-दीदार ही तो है