ऐ काश मिरे गोश ओ नज़र भी रहें साबित
जब हुस्न सुना जाए या नग़्मा नज़र आए
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मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बत
ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है
सफ़र-ए-ना-तमाम
रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है
मुदावा
जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ
ये माना शीशा-ए-दिल रौनक़-ए-बाज़ार-ए-उल्फ़त है
अलिफ़ लैला
इस दौर की तख़्लीक़ भी क्या शीशागरी है
माँ
देहली