मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है
जो क़फ़स को यास के फूँक दे मुझे उस शरर की तलाश है
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सफ़र-ए-ना-तमाम
रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
ख़ूनी क़िला
साज़-ए-हस्ती में कुछ सदा ही नहीं
तुम होश में जब आए तो आफ़त ही बन के आए
बदलती रहती हैं क़द्रें रहील-ए-वक़्त के साथ
मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बत
मुझे उस जुनूँ की है जुस्तुजू जो चमन को बख़्श दे रंग ओ बू
हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस
किस ने बसाया था और उन को किस ने यूँ बर्बाद किया
माँ