मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बत
मोहब्बत का यही इनआम भी है
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(528) Peoples Rate This
रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
इक हल्क़ा-ए-अहबाब है तन्हाई भी उस की
फ़नकार के काम आई न कुछ दीदा-वरी भी
जो दश्त ख़्वाबों में अक्सर दिखाई देता है
वो वादे याद नहीं तिश्ना है मगर अब तक
साज़-ए-हस्ती में कुछ सदा ही नहीं
देहली
शमएँ रौशन हैं आबगीनों में
दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
अलिफ़ लैला
ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है
कहीं साक़ी का फ़ैज़-ए-आम भी है