वो वादे याद नहीं तिश्ना है मगर अब तक
वो वादे भी कोई वादे जो मय पिला के लिए
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न पूछो बेबसी उस तिश्ना-लब की
साज़-ए-हस्ती में कुछ सदा ही नहीं
ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है
अरे ओ अदीब-ए-फ़सुर्दा-ख़ू अरे ओ मुग़न्नी-ए-रंग ओ बू
कौन सुनता है भिकारी की सदाएँ इस लिए
वो तन्हा मेरे ही दरपय नहीं है
ऐ काश मिरे गोश ओ नज़र भी रहें साबित
दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ
रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है
जो दश्त ख़्वाबों में अक्सर दिखाई देता है