पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी
लड़खड़ाना भी ज़रूरी है सँभलने के लिए
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मुदावा
अगर ग़ुबार हो दिल में अगर हो तंग-नज़र
हारने जीतने से कुछ नहीं होता 'वामिक़'
दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
साज़-ए-हस्ती में कुछ सदा ही नहीं
ये माना शीशा-ए-दिल रौनक़-ए-बाज़ार-ए-उल्फ़त है
उसे ज़िद कि 'वामिक़'-ए-शिकवा-गर किसी राज़ से न हो बा-ख़बर
वो लम्हा भर की मिली ख़ुल्द में जो आज़ादी
ख़लिश सुकूँ का मुदावा नहीं तो कुछ भी नहीं
इक हल्क़ा-ए-अहबाब है तन्हाई भी उस की
सफ़र-ए-ना-तमाम
ज़मीर