पल Poetry (page 5)
सूने सूने से फ़लक पर इक घटा बनती हुई
स्वप्निल तिवारी
हर लम्हा ज़िंदगी के पसीने से तंग हूँ
सूर्यभानु गुप्त
सफ़ेद घोड़े पर सवार अजनबी
सुलतान सुबहानी
वो आज मुझ से जब मिली तो धुँद छट गई
सुलतान सुबहानी
बाहर हिसार-ए-ग़म से फ़क़त देखने में था
सुलतान निज़ामी
मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है
सुल्तान अख़्तर
कुछ डूबता उभरता सा रहता है सामने
सुल्तान अख़्तर
हम मुतमइन हैं उस की रज़ा के बग़ैर भी
सुल्तान अख़्तर
हर-चंद अपने अक्स का दिल दर्दमंद हो
सुल्तान अख़्तर
हर इक लम्हा हमें हम से जुदा करती हुई सी
सुल्तान अख़्तर
दस्तार-ए-एहतियात बचा कर न आएगा
सुल्तान अख़्तर
छीन ले क़ुव्वत बीनाई ख़ुदाया मुझ से
सुल्तान अख़्तर
इक ख़ौफ़-ए-बे-पनाह है आँखों के आर-पार
सुलेमान ख़ुमार
न ढलती शाम न ठंडी सहर में रक्खा है
सुलेमान ख़ुमार
कचोके दिल को लगाता हुआ सा कुछ तो है
सुलेमान ख़ुमार
तुम्हें क्या?
सुलैमान अरीब
जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है
सुलैमान अरीब
हर एक नक़्श तिरे पाँव का निशाँ सा है
सूफ़ी तबस्सुम
सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा
सुबोध लाल साक़ी
रहबर-ए-जादा-ए-मंज़िल पे हँसी आती है
सोज़ नजीबाबादी
लिखा जो अश्क से तहरीर में नहीं आया
सिया सचदेव
कुछ इस तरह से है मेरे असर में तन्हाई
सिया सचदेव
जलने में क्या लुत्फ़ है ये तो पूछो तुम परवाने से
सिकंदर हयात ख़याल
अजनबी राह-गुज़र
सिद्दीक़ कलीम
झोंका नफ़स का मौजा-ए-सरसर लगा मुझे
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
ज़लज़ला आया मकाँ गिरने लगा
शुमाइला बहज़ाद
हर लम्हा था सौ साल का टलता भी तो कैसे
शोहरत बुख़ारी
दिल सख़्त निढाल हो गया है
शोहरत बुख़ारी
दिल ने किस मंज़िल-ए-बे-नाम में छोड़ा था मुझे
शोहरत बुख़ारी
बे-नश्शा बहक रहा हूँ कब से
शोहरत बुख़ारी
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