पल Poetry (page 15)

नहीं देखता दिन जिसे चश्म-ए-शब देखती है

फ़रहत एहसास

देखो अभी लहू की इक धार चल रही है

फ़रहत एहसास

क्या हो गया कैसी रुत पलटी मिरा चैन गया मिरी नींद गई

फ़रीद जावेद

ज़माना झुक गया होता अगर लहजा बदल लेते

फ़रह इक़बाल

कभी तुम भीगने आना मिरी आँखों के मौसम में

फ़रह इक़बाल

तर्क-ए-तअल्लुक़ात को इक लम्हा चाहिए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

जब मेरे रास्ते में कोई मय-कदा पड़ा

फ़ना निज़ामी कानपुरी

जो धूप की तपती हुई साँसों से बची सोच

फख्र ज़मान

जाएँगे कहाँ सर पे जब आ जाएगा सूरज

फख्र ज़मान

हार्ट-अटैक

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

भगत-सिंह के नाम

फ़हीम शनास काज़मी

अब तो कुछ भी याद नहीं

फ़हीम शनास काज़मी

ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दिया

फ़हीम शनास काज़मी

समझ रहा था मैं ये दिन गुज़रने वाला नहीं

फ़हीम शनास काज़मी

मैं यूँ जहाँ के ख़्वाब से तन्हा गुज़र गया

फ़हीम शनास काज़मी

था वो जंगल कि नगर याद नहीं

एजाज़ उबैद

होता है फिर वो और किसी याद के सुपुर्द

एजाज़ गुल

ख़ाशाक से ख़िज़ाँ में रहा नाम बाग़ का

एजाज़ गुल

अहया

एजाज़ फ़ारूक़ी

दो तरफ़ था हुजूम सदियों का

एजाज़ आज़मी

ख़्वाब ओ ताबीर-ए-बे-निशाँ मैं था

एजाज़ आज़मी

पहचान

एजाज़ अहमद एजाज़

तुम अच्छे मसीहा हो दवा क्यूँ नहीं देते

एहसान जाफ़री

बड़ी मुश्किलों से काटा बड़े कर्ब से गुज़ारा

एहसान दरबंगावी

आइने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे

दिनेश ठाकुर

लम्हा लम्हा वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ की सैर की

दिलावर अली आज़र

कब तक फिरूंगा हाथ में कासा उठा के मैं

दिलावर अली आज़र

लम्हा लम्हा मुझे वीरान किए देता है

दिल अय्यूबी

रह गया ख़्वाब-ए-दिल-आराम अधूरा किस का

दिल अय्यूबी

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