स्पर्श Poetry (page 2)

दिल का दरवाज़ा खुला हो जैसे

सय्यद मुनीर

वो सैर-ए-गुल के वास्ते आ ही नहीं रहा

सय्यद काशिफ़ रज़ा

था मगर इतना ज़ियादा तो जुनूँ-ख़ेज़ न था

सय्यद काशिफ़ रज़ा

क़रार दीदा-ओ-दिल में रहा नहीं है बहुत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

बेवफ़ा था तो नहीं वो, मगर ऐसा भी हुआ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

बदन को वज्द तिरे बे-हिसाब-ओ-हद आए

सय्यद काशिफ़ रज़ा

तुझ को ही सोचता रहूँ फ़ुर्सत नहीं रही

सय्यद अनवार अहमद

उस के होंटों पर सुर महका करते हैं

स्वप्निल तिवारी

लहू-रंग सय्याल रौशन भँवर

सुलतान सुबहानी

बराए नाम सही दिन के हाथ पीले हैं

सुल्तान अख़्तर

बराए नाम सही दिन के हाथ पीले हैं

सुल्तान अख़्तर

हया भी आँख में वारफ़्तगी भी

सुलेमान ख़ुमार

ज़र्द-चमेली

सूफ़िया अनजुम ताज

ज़बान-ए-ख़ल्क़ को चुप आस्तीं को तर पा कर

सिद्दीक़ मुजीबी

बे-कराँ समझा था ख़ुद को कैसे नादानों में था

सिद्दीक़ मुजीबी

सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी

शहपर रसूल

दिल-ओ-निगाह के हुस्न-ओ-क़रार का मौसम

शाज़िया अकबर

कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ

शारिक़ कैफ़ी

बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे

शारिक़ कैफ़ी

शहर-ए-जाँ में इज़तिराब-ए-सोज़-ए-फ़न देखेगा कौन

शमीम आज़र

वो एक शख़्स मिरे पास जो रहा भी नहीं

शमीम अब्बास

कुछ इस तरह से मिलें हम कि बात रह जाए

शकील आज़मी

ग़म-ए-उल्फ़त मिरे चेहरे से अयाँ क्यूँ न हुआ

शकेब जलाली

ख़ूनीं गुलाब सब्ज़ सनोबर है सामने

शकेब अयाज़

चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की

शहज़ाद अहमद

सवाद-ए-शाम से ता-सुब्ह-ए-बे-किनार गई

शाहिदा हसन

नन्हा सा दिया है कि तह-ए-आब है रौशन

शाहिद कमाल

मैं इंतिहा-ए-यास में तन्हा खड़ा रहा

शाहिद कलीम

ये ज़र्द फूल ये काग़ज़ पे हर्फ़ गीले से

शहबाज़ ख़्वाजा

इक ऐसा वक़्त भी सहरा में आने वाला है

शहबाज़ ख़्वाजा

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