स्पर्श Poetry (page 4)

मैं ज़िंदा हूँ

सईद नक़वी

शिकस्त मान के तस्ख़ीर कर लिया है मुझे

सईद ख़ान

अधूरी नस्ल का पूरा सच

सईद अहमद

महक रहा है बदन सारा कैसी ख़ुशबू है

सादिक़ इंदौरी

महसूस लम्स जिस का सर-ए-रह-गुज़र किया

साबिर ज़फ़र

मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में

साबिर

सब ख़लाओं को ख़लाओं से भिगो सकता है

रियाज़ लतीफ़

मैं वहाँ हूँ कि नहीं चाहे तो जा कर देखे

रियाज़ लतीफ़

ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ

रियाज़ लतीफ़

ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में

रियाज़ लतीफ़

हदों के न होने की ज़िल्लत से हारे हुए

रियाज़ लतीफ़

दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए

रियाज़ लतीफ़

हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ

रज़ी मुजतबा

है ग़नीमत ये फ़रेब-ए-शब-ए-व'अदा ऐ दिल

रज़ा हमदानी

हवा के लम्स से भड़का भी हूँ मैं

राशिद मुफ़्ती

अम्मी की याद में

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

अपने ज़िंदा जिस्म की गुफ़्तार में खोया हुआ

रशीद निसार

कोई ख़्वाब ख़्वाब सा फ़ासला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मिरे बदन में पिघलता हुआ सा कुछ तो है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दमक रहा था बहुत यूँ तो पैरहन उस का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ऐ लम्हो मैं क्यूँ लम्हा-ए-लर्ज़ां हूँ बताओ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

जाने किस ख़्वाब का सय्याल नशा हूँ मैं भी

राज नारायण राज़

आख़िरी वक़्त तिरी राह से हट जाएँगे

राहुल झा

अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया

इरफ़ान सत्तार

जो हो सके तो कभी इतनी मेहरबानी कर

इक़बाल अासिफ़

शोर से बच कर सहमा सहमा बैठा है चुप-चाप

इंतिख़ाब सय्यद

उस के नाम जिसे तारीकी निगल चुकी

इंजिला हमेश

मोहब्बत

इंजिला हमेश

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