दुर्लभ Poetry (page 2)
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
शाद अज़ीमाबादी
अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
सलीम सिद्दीक़ी
26/जानवरी
साहिर लुधियानवी
शिकस्त-ए-आबला-ए-दिल में नग़्मगी है बहुत
सादिक़ नसीम
गुल ओ महताब लिखना चाहता हूँ
साबिर वसीम
दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करो
सबा अकबराबादी
जिस्मों की मेहराब में रहना पड़ता है
रियाज़ लतीफ़
गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं
रियाज़ लतीफ़
दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए
रियाज़ लतीफ़
हम फ़लक के आदमी थे साकिनान-ए-क़र्या-ए-महताब थे
रियाज़ मजीद
कितने नायाब थे लम्हे जो वहाँ पर गुज़रे
रज़िया हलीम जंग
मियाँ के दोस्त
राजा मेहदी अली ख़ाँ
काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी
इंशा अल्लाह ख़ान
सितारे सब मिरे महताब मेरे
इमरान शनावर
एक मुद्दत से तो ठहरे हुए पानी में हूँ मैं
इमरान हुसैन आज़ाद
महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया
इमदाद अली बहर
कोई भी दिल में ज़रा जम के ख़ाक उड़ाता तो
इदरीस बाबर
मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था
इदरीस बाबर
कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई
हुमैरा राहत
ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें
हस्तीमल हस्ती
कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे
हसन नईम
जानता उस को हूँ दवा की तरह
हक़ीर
चलो वापस चलें
हामिद यज़दानी
न सताइश की तमन्ना
हमीद अलमास
बे-सूद एक सिलसिला-ए-इम्तिहाँ न खोल
हकीम मंज़ूर
मोहब्बत का तिरी बंदा हर इक को ऐ सनम पाया
हैदर अली आतिश
शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
ग़ालिब
दिन को थे हम इक तसव्वुर रात को इक ख़्वाब थे
फ़ारूक़ शफ़क़
मिरे हम-रक़्स साए को बिल-आख़िर यूँही ढलना था
फ़रह इक़बाल
निशान-ए-ज़िंदगी
एजाज़ गुल
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