नींद Poetry (page 5)

कितने जुग बीत गए फिर भी न भूला जाए

सय्यद अहमद शमीम

सीने में आग आँख सू-ए-दर लगी रहे

सय्यद अाग़ा अली महर

समाअतों में बहुत दूर की सदा ले कर

स्वप्निल तिवारी

किरन इक मो'जिज़ा सा कर गई है

स्वप्निल तिवारी

कहीं खो न जाना ज़रा दूर चल के

स्वप्निल तिवारी

दिन के पहले पहर में ही अपना बिस्तर छोड़ कर

स्वप्निल तिवारी

दिन के पहले पहर मैं ही अपना बिस्तर छोड़ कर

स्वप्निल तिवारी

चारों ओर समुंदर है

स्वप्निल तिवारी

किसी के ख़्वाब का साया था काफ़ी वक़्त हुआ

सुनील कुमार जश्न

कोई शय है जो सनसनाती है

सुनील आफ़ताब

ऐसी ख़ुशबू तू मुझे आज मयस्सर कर दे

सुमन ढींगरा दुग्गल

ख़्वाबों की लज़्ज़तों पे थकन का ग़िलाफ़ था

सुल्तान अख़्तर

ख़्वाब आँखों से चुने नींद को वीरान किया

सुल्तान अख़्तर

अब तक लहू का ज़ाइक़ा ख़ंजर पे नक़्श है

सुल्तान अख़्तर

कुछ दफ़्न है और साँस लिए जाता है

सुहैल अहमद ज़ैदी

कुछ दफ़्न है और साँस लिए जाता है

सुहैल अहमद ज़ैदी

दर्द के दाइमी रिश्तों से लिपट जाते हैं

सुबहान असद

समझते थे ,वो समझाया गया है

सोनरूपा विशाल

मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है

सिराज लखनवी

फ़ितरत-ए-इश्क़ गुनहगार हुई जाती है

सिराज लखनवी

जब खुले मुट्ठी तो सब पढ़ लें ख़त-ए-तक़्दीर को

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हर इक क़दम पे ज़ख़्म नए खाए किस तरह

सिब्त अली सबा

तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे

शमशाद शाद

नींद की गोली न खाओ नींद लाने के लिए

शिवकुमार बिलग्रामी

ख़ून-ए-दिल होता रहा ख़ून-ए-जिगर होता रहा

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

था ग़ैर का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

गोर में याद-ए-क़द-ए-यार ने सोने न दिया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

रतजगा

शाज़ तमकनत

क्या क़यामत है कि इक शख़्स का हो भी न सकूँ

शाज़ तमकनत

जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है

शाज़ तमकनत

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