नींद Poetry (page 6)

अचानक हड़बड़ा कर नींद से मैं जाग उट्ठा हूँ

शारिक़ कैफ़ी

रोता हुआ बकरा

शारिक़ कैफ़ी

सूना आँगन नींद में ऐसे चौंक उठा है

शारिक़ कैफ़ी

ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है

शारिक़ कैफ़ी

होने से मिरे फ़र्क़ ही पड़ता था भला क्या

शारिक़ कैफ़ी

बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे

शारिक़ कैफ़ी

जब आफ़्ताब की आग इस ज़मीं को चाटेगी

शारिक़ जमाल

रात शहर और उस के बच्चे

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

बैत-ए-अंकबूत

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को

शमशीर हैदर

दीवार की सूरत था कभी दर की तरह था

शमीम रविश

याद की सुब्ह ढल गई शौक़ की शाम हो गई

शमीम करहानी

निगार-ए-मह-वश ओ महबूब-ए-लाला-रू की तरह

शमीम करहानी

अगरचे इश्क़ में इक बे-ख़ुदी सी रहती है

शमीम करहानी

तिलिस्म है कि तमाशा है काएनात उस की

शमीम हनफ़ी

रुकने का अब नाम न ले है राही चलता जाए है

शमीम अनवर

अहम आँखें हैं या मंज़र खुले तो

शमीम अब्बास

प्यार में उस ने तो दानिस्ता मुझे खोया था

शकील शम्सी

वो हवा दे रहे हैं दामन की

शकील बदायुनी

उन से उम्मीद-ए-रू-नुमाई है

शकील बदायुनी

जल्वा-ए-हुस्न-ए-करम का आसरा करता हूँ मैं

शकील बदायुनी

शाइ'री रूह में तहलील नहीं हो पाती

शकील आज़मी

रात के पिछले पहर

शकेब जलाली

पर्दा-ए-शब की ओट में ज़ोहरा-जमाल खो गए

शकेब जलाली

कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के

शकेब जलाली

हम-जिंस अगर मिले न कोई आसमान पर

शकेब जलाली

न दिन पहाड़ लगे अब न रात भारी लगे

शकेब बनारसी

दामन-ए-ज़ब्त को अश्कों में भिगो लेता हूँ

शकेब बनारसी

तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

रात मेरे फ़ुग़ाँ-ओ-नाले से

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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