अचानक हड़बड़ा कर नींद से मैं जाग उट्ठा हूँ
पुराना वाक़िआ है जिस पे हैरत अब हुई है
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कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ
इंतिहा तक बात ले जाता हूँ मैं
मजबूरी
किसी ताँगे में फिर सामान रक्खा जा रहा है
अब मुझे कौन जीत सकता है
वो बस्ती ना-ख़ुदाओं की थी लेकिन
नज़र भर देख लूँ बस
भीड़ में जब तक रहते हैं जोशीले हैं
मुमकिन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक
सफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा था
बीनाई भी क्या क्या धोके देती है
कुत्ते की मौत