अब मुझे कौन जीत सकता है
तू मिरे दिल का आख़िरी डर था
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लोग सह लेते थे हँस कर कभी बे-ज़ारी भी
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
बहुत गदला था पानी उस नदी का
कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले
मैं किसी दूसरे पहलू से उसे क्यूँ सोचूँ
रोता हुआ बकरा
रुका महफ़िल में इतनी देर तक मैं
बहुत हिम्मत का है ये काम 'शारिक़'
सूना आँगन नींद में ऐसे चौंक उठा है
कोई कुछ भी कहता रहे सब ख़ामोशी से सुन लेता है
उदास हैं सब पता नहीं घर में क्या हुआ है
एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़