आओ गले मिल कर ये देखें
अब हम में कितनी दूरी है
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ख़ाक को मैं ख़्वार क्यूँ करता
जनाज़े में तो आओगे न मेरे
क़ुर्ब का उस के उठा कर फ़ाएदा
सारी दुनिया से लड़े जिस के लिए
किस तरह आए हैं इस पहली मुलाक़ात तलक
लरज़ते काँपते हाथों से बूढ़ा
ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है
वो बस्ती ना-ख़ुदाओं की थी लेकिन
बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे
कभी ख़ुद को छूकर नहीं देखता हूँ
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं