वो बस्ती ना-ख़ुदाओं की थी लेकिन
मिले कुछ डूबने वाले वहाँ भी
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बात फाँसी के दिन की नहीं
ये चुपके चुपके न थमने वाली हँसी तो देखो
जो कहता है कि दरिया देख आया
रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे
मजबूरी
सूना आँगन नींद में ऐसे चौंक उठा है
ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
फ़क़त हिस्से की ख़ातिर
उम्र भर किस ने भला ग़ौर से देखा था मुझे
जीत गया जीत गया
कौन था वो जिस ने ये हाल किया है मेरा
भीड़ में जब तक रहते हैं जोशीले हैं