यही कमरा था जिस में चैन से हम जी रहे थे
ये तन्हाई तो इतनी बे-मुरव्वत अब हुई है
Parveen Shakir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1088) Peoples Rate This
इंतिहा तक बात ले जाता हूँ मैं
सामने तेरे हूँ घबराया हुआ
सब आसान हुआ जाता है
मश्क़
जो कहता है कि दरिया देख आया
कुतिया
ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है
किस तरह आए हैं इस पहली मुलाक़ात तलक
दुनिया शायद भूल रही है
जीत गया जीत गया
तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है
बहुत गदला था पानी उस नदी का