बहुत गदला था पानी उस नदी का
मगर मैं अपना चेहरा देख आया
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नया यूँ है कि अन-देखा है सब कुछ
रोता हुआ बकरा
हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम
ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
आइने का साथ प्यारा था कभी
तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है
मश्क़
ये सच है दुनिया बहुत हसीं है
कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ
अचानक भीड़ का ख़ामोश हो जाना
रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे
जैसे ये मेज़ मिट्टी का हाथी ये फूल