बहुत भटके तो हम समझे हैं ये बात
बुरा ऐसा नहीं अपना मकाँ भी
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(559) Peoples Rate This
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
मश्क़
यही रस्सी मिली थी
कम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाए
कुतिया
वो सारे लफ़्ज़ झूटे थे
बात फाँसी के दिन की नहीं
गुज़र रहा है वो लम्हा तो याद आया है
होने से मिरे फ़र्क़ ही पड़ता था भला क्या
तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है
वो बात सोच के मैं जिस को मुद्दतों जीता
दिलों पर नक़्श होना चाहता हूँ