कम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाए
कोई मेरा भी बुरा चाहने वाला हो जाए
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क़ुर्ब का उस के उठा कर फ़ाएदा
अजब मुश्किल है मेरी
लरज़ते काँपते हाथों से बूढ़ा
तो क्या मरना भी अब मुमकिन नहीं है
दूसरे हाथ का दुख
अजब शिकस्त का एहसास दिल पे छाया था
एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़
सफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा था
ये चुपके चुपके न थमने वाली हँसी तो देखो
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे
ये सच है दुनिया बहुत हसीं है