कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
जो मिरा सारे का सारा था कभी
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अब मुझे कौन जीत सकता है
मोहब्बत की इंतिहा पर
एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए
जन्नत से दूर
सियाने थे मगर इतने नहीं हम
एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़
नया यूँ है कि अन-देखा है सब कुछ
नींद के वास्ते वैसे भी ज़रूरी है थकन
बड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझे
पहली बार वो ख़त लिक्खा था
निगाह नीची हुई है मेरी
कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं