कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले
ये मेरी आख़िरी महफ़िल है तन्हाई से पहले
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बीच भँवर से लौट आऊँगा
गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे
क़ुर्ब का उस के उठा कर फ़ाएदा
एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए
किस एहसास-ए-जुर्म की सब करते हैं तवक़्क़ो
यही रस्सी मिली थी
कोई कुछ भी कहता रहे सब ख़ामोशी से सुन लेता है
फ़क़त हिस्से की ख़ातिर
नया यूँ है कि अन-देखा है सब कुछ
रात थी जब तुम्हारा शहर आया
सब आसान हुआ जाता है
मरने वाले से जलन