किस एहसास-ए-जुर्म की सब करते हैं तवक़्क़ो
इक किरदार किया था जिस में क़ातिल था मैं
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आओ गले मिल कर ये देखें
कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
तो क्या मरना भी अब मुमकिन नहीं है
मुमकिन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक
सियाने थे मगर इतने नहीं हम
हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम
क़ुर्ब का उस के उठा कर फ़ाएदा
रोता हुआ बकरा
दिलों पर नक़्श होना चाहता हूँ
तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा
बात फाँसी के दिन की नहीं
बहरूपिया