उम्र भर किस ने भला ग़ौर से देखा था मुझे
वक़्त कम हो तो सजा देती है बीमारी भी
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लोग सह लेते थे हँस कर कभी बे-ज़ारी भी
ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है
अचानक हड़बड़ा कर नींद से मैं जाग उट्ठा हूँ
बीच भँवर से लौट आऊँगा
वो बात सोच के मैं जिस को मुद्दतों जीता
मरने वाले से जलन
आइने का साथ प्यारा था कभी
बहुत हसीं रात है मगर तुम तो सो रहे हो
कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ
जो कहता है कि दरिया देख आया