तसल्ली अब हुई कुछ दिल को मेरे
तिरी गलियों को सूना देख आया
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दूसरे हाथ का दुख
सियाने थे मगर इतने नहीं हम
इंतिहा तक बात ले जाता हूँ मैं
नींद के वास्ते वैसे भी ज़रूरी है थकन
छुट्टी का दिन
किसी ताँगे में फिर सामान रक्खा जा रहा है
बहुत गदला था पानी उस नदी का
पहली बार वो ख़त लिक्खा था
बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे
बहरूपिया
सामने तेरे हूँ घबराया हुआ