भीड़ में जब तक रहते हैं जोशीले हैं
अलग अलग हम लोग बहुत शर्मीले हैं
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ
मौत ने सारी रात हमारी नब्ज़ टटोली
अभी तो अच्छी लगेगी कुछ दिन जुदाई की रुत
वो बस्ती ना-ख़ुदाओं की थी लेकिन
तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है
कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं
एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़
कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले
बीनाई भी क्या क्या धोके देती है
नहीं मैं हौसला तो कर रहा था
मजबूरी
जीत गया जीत गया