अभी तो अच्छी लगेगी कुछ दिन जुदाई की रुत
अभी हमारे लिए ये सब कुछ नया नया है
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आइने का साथ प्यारा था कभी
क़ुर्ब का उस के उठा कर फ़ाएदा
बात फाँसी के दिन की नहीं
मंज़िलों पर हम मिलें ये तय हुआ
एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़
मैं किसी दूसरे पहलू से उसे क्यूँ सोचूँ
कभी ख़ुद को छूकर नहीं देखता हूँ
नींद के वास्ते वैसे भी ज़रूरी है थकन
ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है
बहुत हसीं रात है मगर तुम तो सो रहे हो
कम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाए
भीड़ में जब तक रहते हैं जोशीले हैं