भरोसा भरोसा
ये क्या रट लगाई है तुम ने?
तुम अलग हो कोई इस जहाँ से
अरे
जैसा मैं वैसे तुम
मैं ही जब आज की सुब्ह वैसा न था जैसा सोया था रात
तो फिर किस लिए और क्यूँ
मैं तुम्हारी पुरानी वफ़ा-दारियों पर भरोसा करूँ
ये बताओ
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जिन पर मैं थोड़ा सा भी आसान हुआ हूँ
निगाह नीची हुई है मेरी
अब मुझे कौन जीत सकता है
पहली बार वो ख़त लिक्खा था
मुझे हँसना पड़ा आख़िर
बहुत गदला था पानी उस नदी का
बीनाई भी क्या क्या धोके देती है
जनाज़े में तो आओगे न मेरे
उम्र भर किस ने भला ग़ौर से देखा था मुझे
सामने तेरे हूँ घबराया हुआ
मंज़िलों पर हम मिलें ये तय हुआ
बहुत हिम्मत का है ये काम 'शारिक़'